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भारत के हम रहने वाले भारतीय कहलाते हैं, शिक्षा ऐसी पाते हैं कि भारतीय नहीं बन पाते हैं।

कविता

भारत के हम रहने वाले भारतीय कहलाते हैं,

शिक्षा ऐसी पाते हैं कि भारतीय नहीं बन पाते हैं।

मैकाले की शिक्षा पाते, मैक्स मूलर इतिहास पढ़ाते हैं ।

मैकाले की ऐसी शिक्षा, वैदिक गणित को अविकसित बताते हैं।

मैक्समूलर का क्या कहना, भारतीयों को ही विदेशी बताते हैं।

मन से हम अंग्रेजों वाले, भारतीय कहलाते हैं।

शिक्षा ऐसी बातें हैं कि भारतीय नहीं बन पाते हैं।

आजादी का इतिहास यहां, केवल कांग्रेस ही पढ़ाते हैं।

गांधी पटेल तो दिख पाते, पर सुभाष विलुप्त हो जाते हैं।

राणा शिवा बैरागी को क्या बोलें, जब विवेकानंद सांप्रदायिक हो जाते हैं।

स्वाभिमान शून्य हम होते जाते, भारतीय कहलाते हैं।

शिक्षा ऐसी बातें हैं कि भारतीय नहीं बन पाते हैं।

संस्कार केंद्र कैसे बचते, ये आडंबर कहलाते हैं।

पश्चिम जो विज्ञान दीवाना, इसका विज्ञान समझ नहीं पाते हैं।

विज्ञान विज्ञान रहते-रटते अविकसित नव वर्ष मनाते हैं।

हम व्यर्थ नाम इंडिया वाले, भारतीय कहलाते हैं।

शिक्षा ऐसी पाते हैं कि भारतीय नहीं बन पाते हैं।

त्योहारों का अर्थ न जानें, रक्षाबंधन को हुमायूं से शुरू बताते हैं।

वेद पुराणों को कौन जाने, अंग्रेजी में संस्कृत पढ़ाए जाते हैं।

आध्यात्म को कौन बताए, पापी पॉप सॉन्ग गाए जाते हैं।

अमर्त्य हम अब मरते दिखते, भारतीय कहलाते हैं।

शिक्षा ऐसी पाते हैं कि भारतीय नहीं बन पाते हैं।

रचनाकार

श्री भाष्कर सिंह (भाष्कराचार्य)

कार्तिक शुक्ल दशमी संवत्-२०५६

 आज बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर प्रस्तुत

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