रामराज्य का परिचय
।।अयोध्यापति श्री राजा रामचंद्र की जय।।
उन महान राजा रामचद्रं जी की परमप्रिय राजधानी अयोध्यापुरी एक समय विश्व का राजनैतिक व सामरिक केंद्र था। आज के भारतवासियों को यह बात पता ही नहीं है तो विश्व के अन्य लोगों को पता होने का प्रश्न ही नहीं उठता है। अयोध्यापुरी वह स्थान जहाँ के प्रतापी व विश्वब्यापी राजाओं और उनके शासन के सूत्र को सम्पूर्ण विश्व में मान्यता प्राप्त होती थी।
चाहे राजा मनु हों, राजा पृथु हों, भागीरथ हों, या राजा राम हों, सभी के कृत्यों ने पूरे विश्व की ब्यवस्था को प्रभावित किया। राजा रामचन्द्र ने ही सर्वप्रथम शासन के वे सूत्र दिए जो एक राजा या शासन प्रणाली के उत्कृष्ट मानक बन गए, इसी मानक को पूरा विश्व रामराज्य के नाम से जानता है।
ये मानक क्या हैं? आप निम्नलिखित सूत्रों में इसका अवलोकन कर सकते हैं-
रामराज्य का वर्णन श्री वाल्मीकि रामायण के बालकांड के प्रथम प्रथम सर्ग में-
नन्दिग्रामे जटां हित्वा भ्रातृभिः सहितोऽनघः |
रामः सीतामनुप्राप्य राज्यं पुनरवाप्तवान् || १-१-८९
प्रहृष्टमुदितो लोकस्तुष्टः पुष्टः सुधार्मिकः |
निरामयो ह्यरोगश्च दुर्भिक्षभयवर्जितः || १-१-९०
न पुत्रमरणं किंचिद्द्रक्ष्यन्ति पुरुषाः क्वचित् |
नार्यश्चाविधवा नित्यं भविष्यन्ति पतिव्रताः || १-१-९१
न चाग्निजं भयं किञ्चिन्नाप्सु मज्जन्ति जन्तवः |
न वातजं भयं किञ्चिन्नापि ज्वरकृतं तथा || १-१-९२
न चापि क्षुद्भयं तत्र न तस्करभयं तथा |
नगराणि च राष्ट्राणि धनधान्ययुतानि च || १-१-९३
नित्यं प्रमुदिताः सर्वे यथा कृतयुगे तथा |
अर्थात- निष्पाप रामचंद्र जी ने नंदीग्राम में अपनी जटा कटा कर भाइयों के साथ, सीता को पाने के अनंतर पुनः अपना राज्य प्राप्त किया है।।८९ ।।
अब राम के राज्य में लोग प्रसन्न, सुखी, संतुष्ट, पुष्ट, धार्मिक तथा रोग-व्याधि से मुक्त रहेंगे, उन्हें दुर्भिक्ष का भय न होगा।।९०।।
कोई कहीं भी अपने पुत्र की मृत्यु नहीं देखेंगे, स्त्रियां विधवा न होंगी, सदा ही पतिव्रता होंगी।।९१।।
आग लगने का किंचित भी भय न होगा, कोई प्राणी जल में नहीं डूबेंगे, वात और ज्वर का भय थोड़ा भी नहीं रहेगा।।९२।।
क्षुधा और चोरी का डर भी जाता रहेगा। सभी नगर और राष्ट्र धनधान्य संपन्न होंगे। सतयुग की भांति सभी लोग सदा प्रसन्न रहेंगे।।९३।।
रामराज्य का वर्णन श्री वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के अष्टाविंशत्याधिकशततमः सर्गः(१२८)
न पर्यदेवन्विधवा न च व्यालकृतं भयम् |
न व्याधिजं भयन् वापि रामे राज्यं प्रशासति || ६-१२८-९९
निर्दस्युरभवल्लोको नानर्थः कन् चिदस्पृशत् |
न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि कुर्वते || ६-१२८-१००
सर्वं मुदितमेवासीत्सर्वो धर्मपरोअभवत् |
राममेवानुपश्यन्तो नाभ्यहिन्सन्परस्परम् || ६-१२८-१०१
आसन्वर्षसहस्राणि तथा पुत्रसहस्रिणः |
निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशासति || ६-१२८-१०२
रामो रामो राम इति प्रजानामभवन् कथाः |
रामभूतं जगाभूद्रामे राज्यं प्रशासति || ६-१२८-१०३
नित्यपुष्पा नित्यफलास्तरवः स्कन्धविस्तृताः |
कालवर्षी च पर्जन्यः सुखस्पर्शश्च मारुतः || ६-१२८-१०४
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा लोभविवर्जिताः |
स्वकर्मसु प्रवर्तन्ते तुष्ठाः स्वैरेव कर्मभिः || ६-१२८-१०५
आसन् प्रजा धर्मपरा रामे शासति नानृताः |
सर्वे लक्षणसम्पन्नाः सर्वे धर्मपरायणाः || ६-१२८-१०६
अर्थात- श्री राम के राज्य शासनकाल में कभी विधवाओं का विलाप नहीं सुनाई पड़ता था। सर्प आदि दुष्ट जंतुओं का भय नहीं था और रोगों की भी आशंका नहीं थी।।९८।।
संपूर्ण जगत में कहीं चोरों और लुटेरों का नाम भी नहीं सुना जाता था। कोई भी मनुष्य अनर्थकारी कार्यों में हाथ नहीं डालता था और बूढ़ों को बालकों के अंत्येष्टि-संस्कार नहीं करने पड़ते थे।।९९।।
सब लोग सदा प्रसन्न ही रहते थे। सभी धर्मपरायण थे और श्रीराम पर ही बारंबार दृष्टि रखते हुए वे कभी एक दूसरे को कष्ट नहीं पहुंचाते थे।।१००।।
श्री राम के राज्य शासन करते समय लोग सहस्त्रों वर्षं तक जीवति रहते थे, सहस्त्रों पुत्रों के जनक होते थे और उन्हें किसी प्रकार का रोग या शोक नहीं होता था।।१०१।।
श्री राम के राज्य शासनकाल में प्रजा वर्ग के भीतर केवल राम, राम, राम की ही चर्चा होती थी। सारा जगत श्रीराममय हो रहा था।।१०२।।
श्री राम के राज्य में वृक्षों की जड़े सदा मजबूत रहती थीं। वे वृक्ष सदा फूलों और फलों से लदे रहते थे। मेघ प्रजा की इच्छा और आवश्यकता के अनुसार ही वर्षा करते थे। वायु मंद गति से चलती थी, जिससे उसका स्पर्श सुखद जान पड़ता था।।१०३।।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों के लोग लोभ रहित होते थे। सबको अपने ही वर्णाश्रमोचित कर्मों से संतोष था और सभी उन्हीं के पालन में लगे रहते थे।।१०४।।
श्री राम के शासनकाल में सारी प्रजा धर्म में तत्पर रहती थी। झूठ नहीं बोलती थी सब लोग उत्तम लक्षणों से संपन्न थे और सबने धर्म का आश्रय ले रखा था।।१०५।।
(उक्त वर्णित श्लोकों के माध्यम से आदि कवि श्री वाल्मीकि जी ने राजा रामचंद्र के द्वारा निर्धारित रामराज्य के निहित सूत्रों का वर्णन किया है, आप और हम इन सूत्रों के आधार पर ही समस्त जगत में रामराज्य के संचालन का प्रयास करें)
इस कार्य के लिए रामराज्य प्रशासन प्रयासरत है आप भी हमारे साथ जुड़ें और रामराज्य के लिए कार्य करें- जय श्री राम
रामराज्य प्रशसन का उद्देश्य
रामराज्य का सञ्चालन समस्त राष्ट्र, देश व नगर की सीमाओं से परे समस्त प्रजा के कल्याण के लिए करना है।
एक ऐसा कल्याणकारी राज्य जहाँ, लोग प्रसन्न, सुखी, संतुष्ट, पुष्ट, धार्मिक तथा रोग व्याधि से मुक्त हो, उन्हें दुर्भिक्ष का भय न हो, कोई कहीं भी अपने पुत्र की मृत्यु नहीं देखे, स्त्रियाँ विधवा न हों, दाम्पत्य जीवन सुखी व संतुष्ट हों, अकाल मृत्यु का भय न हो, रोग व्याधि का भय न हो, भूखा न रहना पड़े, चोरों लुटेरों का भय न हो।
प्रजा झूठ न बोले, सभी प्रजाजन उत्तम लक्षणों से संपन्न हों, सभी लोभ रहित हों, सभी अपने निर्धारित कर्म में संतुष्ट रहें, एक दूसरे को कष्ट न पहुचाते हों, कोई अनर्थकारी कार्य न करे या करना पड़े, सर्प आदि दुष्ट जंतुओं का भय न हो।
प्रकृति इस प्रकार अनुकूल हो सके कि वृक्षों की जड़ें अनुकूल हो, वृक्ष सदा फूलों-फलों से लदे रहें, मेघ प्रजा की इच्छा व आवश्यकता के अनुसार ही वर्षा करें। मनुष्यों का आपस में युद्ध की संभावना समाप्त हो जाएं और समस्त विश्व एक परिवार की तरह उपस्थित रहे।
इन्हीं उद्देश्यों के पूर्ति हेतु रामराज्य प्रशासन मर्यादित है।
राजा रामचंद्र की जय
श्री रामराज्य प्रशासन (राजा रामचंद्र जी का सचिवालय)