राजा रामचन्द्र जी की जय
विजयादशमी के शुभ अवसर पर रामराज्य की समस्त प्रजा को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं
मैं रामराज्य प्रशासक भाष्कर सिंह इस संदेश को पूरा सुनने का संकल्प और धैर्य रखने का आपसे आग्रह करता हूँ
आज कलियुग के प्रारंभ से 5124 वां वर्ष है और राजा विक्रमादित्य के राज्य का 2079 वां वर्ष है, जिसे हम विक्रम संवत के नाम से जानते हैं।
युद्ध के बिना विजय संभव नहीं है, धर्म के स्थापना के लिए युद्ध अनिवार्य है,
युद्ध का आलिंगन करके ही श्री राम ने असुर राज रावण का वध किया और रामराज्य को स्थापित किया, जिसके कारण आज भी वे हमारे राजा हैं।
इसी युद्ध का आलिंगन करके आदिशक्ति जगदंबा ने भी महिषासुर का वध करके देवताओं का उद्धार किया था।
अतः रामराज्य के प्रजा का भी कर्तव्य है कि वह युद्ध करे, युद्ध के लिए तत्पर रहे, असुरों के विनाश को सदैव प्रयासरत रहे,
कलियुग के प्रारंभ से लेकर आजतक अनेकों बार भारत की पवित्र और सनातन धरती पर असुरों का नियंत्रण रहा है,
परंतु भारत की दैवी परंपरा के मनुष्यों ने सदैव ही असुरों का और उनकी सत्ता का प्रतिकार किया है और बार-बार धर्म के शासन को स्थापित किया है,
कभी शकों का कभी हूणों का, कभी यवनों का और कभी मलेच्छों का भारत की धरती पर नियंत्रण रहा है,
वे सदैव ही धर्म को समाप्त करके अधर्म के शासन को स्थापति करने हेतु प्रयासरत रहे हैं, परंतु भरत की परंपरा के भारतीय कभी भी उनके अधर्म के शासन को स्वीकार नहीं करते हैं
युद्ध के माध्यम से प्रतिकार करके इन असुरों को सदैव ही समाप्त करते रहते हैं और समस्त विश्व की प्रजा के कल्याण का मार्ग प्रसस्त करते हैं।
आज भी पूरे विश्व में असुरों के द्वारा सनातन धर्म संस्कृति को आघात पहुंचाया जा रहा है, भारत जो कि सनातन धर्म संस्कृति का केंद्र है वहाँ भी उनका यह प्रयास जारी है,
राजा रामचन्द्र जी के अनुकूल राज्य व्यवस्था प्राप्त करने में ये असुर सबसे बड़ी बाधा हैं,
इन असुरों की सत्ता तो आज से लगभग 75 वर्ष पूर्व ही बड़े रक्तपात और विभाजन के पश्चात समाप्त हो गई
परंतु इनकी जड़ों को समाप्त किया जाना अभी शेष है,
इन असुरों का केंद्र भारत की धरती से बहुत दूर मलेच्छ और यवन क्षेत्र में है और वे अब निस्तेज हो रहे हैं,
जैसे जैसे ये असुर निस्तेज होंगे वैसे-वैसे ही राजा रामचन्द्र की प्रजा का तेज बढ़ता जाएगा और जल्द ही पूरे विश्व से इन असुरों की सत्ता निर्मूल हो जाएगा
परंतु जिस प्रकार से राजा रामचंद्र जी के साथ युद्ध में वानर भालू रूपी सैनिक सदैव तत्पर थे, उसी प्रकार हमें भी युद्ध में तत्पर रहना है,
तभी इन असुरों को भारत समेत समस्त विश्व से जड़ समेत निर्मूल किया जा सकता है।
युद्ध का तात्पर्य केवल रक्त-पात करना ही नहीं है, रक्तपात की आवश्यकता तो तब पड़ती है जब और कोई मार्ग शेष न हो
वर्तमान समय में सतर्क रहकर असुरों को अपने और अपनों पर आक्रमण करने से रोकना भी युद्ध की एक अभूतपूर्व कला है,
इस कला में हमें पारंगत होना है,
युद्ध की यह कला एक ओर जहां हमारे अस्तित्व को सुरक्षित रखेगी वही असुरों के मनोबल को कमजोर करके उनके जड़ों को कमजोर करेगी
आज जिन्हें हम असुर कह रहे हैं वे भी कालांतर में हमारे बंधु ही थे परंतु असुर सत्ता के कालखंड में या वर्तमान में असुरों के षड्यन्त्र के वे शिकार हो चुके हैं
जिसके कारण उन्होंने सनातन संस्कृति का परित्याग कर दिया है और अब वे हमें अपना घोर शत्रु समझते हैं,
परंतु जब सामने होते हैं तो मित्र और बंधु होने का स्वांग करते हैं, यह स्वांग उसी तरह का है जैसे रावण ने सीता हरण हेतु साधु होने का स्वांग किया था,
वे रूप रंग, वेश-भूषा में हमारे ही जैसे होने के कारण हमें आसानी से अपने चक्रव्यूह में फँसाकर अपनी जड़ों को मजबूत करने का प्रयास करते हैं,
लेकिन जैसे ही ये हमसे अलग अपने समूह में होते हैं तो हमें समाप्त करने, हमारी संपत्ति को लूटने, हमारी स्त्रियों को लूटने और नाना प्रकार के अधार्मिक चक्रव्यूह को रचते हैं,
अभी राजा रामचन्द्र की प्रजा इनके बनाए चक्रव्यूह में बड़ी आसानी से फँस जाती है और अपना सबकुछ नष्ट कर बैठती है,
इसीलिए हमें युद्ध की इस कला का ज्ञान होना आवश्यक है, जिससे की हम इन असुरों के चक्रव्यूह में न फँसें और अपनी रक्षा कर सकें
अभी प्रजा को इस बात की कल्पना ही नहीं है कि असुरों की पूरी सभ्यता और संस्कृत का आधार ही झूठ, पाखंड, अनीति, घृणा और षड्यन्त्र इत्यादि ही है,
इसी कारण उससे बचने के उपाय भी प्रजा द्वारा नहीं किया जाता है,
अभी प्रजा का अधिकांश वर्ग परिवार पालन, संपत्ति संग्रहण, धनार्जन और मायाजनित मनोरंजन में वर्तमान सरकारों के भरोसे ही रहता है,
परंतु जैसे ही असुर उसके परिवार के सदस्यों का गला रेतकर कर हत्या कर देते हैं, उसके धन संपत्ति को लूट लेते हैं, उसके मनोरंजन आयोजनों पर आक्रमण कर देते हैं
तो वह सरकार से अपेक्षा करता है कि सरकार असुरों के इस कृत्य का उन्हें दंड दे,
परंतु सरकार में तो असुरों की भी भागीदारी होती है, इसलिए सरकार असुरों को दंड देने के स्थान पर दैवी प्रजा को कुछ धन, आय के साधन इत्यादि देकर शांत कर देती है,
चूंकि प्रजा को इस बात का विचार ही नहीं होता है कि उसके ऊपर हुआ आक्रमण एक दुर्घटना न होकर अपितु एक निरंतर होने वाला सुनुयोजित आसुरी षड्यन्त्र है
जो कि असुरों के सत्ता के समाप्त होने के बाद से निरंतर चला आ रहा है।
इसीलिए राजा रामचंद्र की प्रजा पुनः अपने परिवार पालन, संपत्ति संग्रहण, धनार्जन और मायाजनित मनोरंजन इत्यादि में व्यस्त हो जाती है।
वैसे कुछ प्रजा वर्ग में इस बात की चेतना है, इसीलिए उसने कुछ मात्रा में अपने अनुकूल सरकारों का सृजन किया है, जिसके कारण असुरों में भय व्याप्त हुआ है,
परंतु ये सरकारें स्थाई नहीं होती हैं, प्रत्येक 4-5 वर्षों में बदलती रहती हैं, जिस चुनाव के माध्यम से यह सरकारें बनती हैं उसमें असुरों की भी भागीदारी होती है,
चुनाव के समय की परिस्थितियाँ हमेशा ही अनुकूल और दैवी प्रजा के पक्ष में हों इसका कोई भरोसा नहीं है, कभी भी असुरों के अनुकूल सरकार बन सकती है,
तब यही असुर अपने अनुकूल नियम इत्यादि को बनाकर सनातन दैवी प्रजा का पुनः संहार प्रारंभ कर देते हैं
इसीलिए रामराज्य प्रशासन प्रजा को विजयादशमी के इस महान अवसर पर यह कहना चाहता है कि की केवल संगठित होने से ही सब कुछ संभव नहीं होता है
संगठन में बंधुत्व भी होना चाहिए, बंधुत्व असुरों के साथ नहीं अपितु अपनों के साथ होना चाहिए, क्योंकि असुर कभी बंधु नहीं होते हैं
प्रजा को निरंतर युद्ध की उस कला में अपने को सिद्ध करने का प्रयास करना चाहिए जिससे वे इस बात को समझ सकें की कौन सनातन संस्कृति का बंधु नहीं है,
इससे वे अपनी रक्षा कर सकेंगे और शत्रु के निर्मूलन हेतु भी सिद्ध हो सकेंगे
रामराज्य प्रशासन समस्त प्रजाजनों से आह्वान करता है कि वह श्रीराम के तरह ही निडर बनें, धर्म और सत्य के लिए त्याग करने हेतु निरंतर तत्पर रहें,
रामराज्य प्रशासन के साथ निरंतर सहयोग करें, अपना समय दें
पूरे दिन में 8 प्रहर होते हैं कम से कम एक प्रहार समस्त रामराज्य के रक्षा, उन्नयन, विस्तार हेतु समर्पित करें।
असुर 8 ओं प्रहार हमारे विरुद्ध कार्य करने हेतु तत्पर रहते हैं, परंतु यदि हम केवल एक प्रहर रामराज्य के लिए निरंतर समर्पित करने में सिद्ध हो जाएँ तो
यह रामराज्य प्रशासन श्रीमदवलिमिकी और अन्य रामायणो में दिए गये रामराज्य के अनुकूल शासन पूरे विश्व में संचालित करने में अतीव समर्थ होगा।
विजयादशमी पर दिए गये इस संदेश को यदि आप अंगीकार कर सकें और आपको यह लगे कि आपको रामराज्य प्रशासन के साथ जुड़कर कार्य करना है
तो हमारे व्हाट्सप्प नंबर 9811529379 पर संदेश भेजकर संपर्क करें, हमारे ईमेल id- ramrajyaprashasan@gmail.com पर संदेश भेजें,
हमारे वेबसाईट www.ramrajya.info को निरंतर देखते रहें, अपने लिए अपने क्षमता और रुचि अनुसार रामराज्य प्रशासन का दायित्व ग्रहण करें
यदि राजा रामचन्द्र जी ने आपको श्रीसंपन्न बनाया है तो राजा रामचन्द्र जी के राजकोष को समृद्ध करें उसके लिए हमारे वेबसाईट पर विज़िट करें
यदि राजा रामचंद्र जी ने आपको विद्या सम्पन्न किया है तो श्री रामकथा को विवध माध्यमों और उक्तियों से जन-जन में प्रचारित करें
यदि राजा रामचंद्र जी ने आपको शक्ति सम्पन्न किया है तो रामराज्य सभा की रक्षा और प्रजा के लिए न्याय का कार्य करें
यदि राजा रामचन्द्र जी ने सभी प्रकार से आपको सम्पन्न किया है तो रामराज्य प्रशासन के साथ सभी प्रकार से जुड़कर कार्य करें।
यदि आपको लगता है कि राजा रामचन्द्र जी ने आपको संपन्नता नहीं प्रदान की है तो पूर्ण समर्पण के उनसे आग्रह करें कि आपको भी ऐसी संपन्नता प्रदान करें
कि आप राजा रामचंद्र जी के राज्य और प्रजा की सेवा करने के योग्य हो सकें, निश्चित ही आप योग्य हो जाएंगे, रामराज्य प्रशासन का यह वचन कभी मिथ्या नहीं होता है,
यदि आप विभीषण की तरह धर्म के पक्ष में राजा रामचंद्र की शरणागति प्राप्त करना चाहते हैं तो आपका सदैव स्वागत है क्योंकि आप भी पूर्वकाल में हमारे ही बंधु थे
इसी के साथ राज्य रामचन्द्र की जय, रामभक्त हनुमान की जय, श्रीराम की समस्त प्रजा की जय।
यह संदेश अधिक से अधिक शेयर करके आप रामराज्य का कार्य करने वाली प्रजा बनेगें और रामजी की कृपा के भागी होंगे।
जय श्री राम