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कोई भी अनाथ नहीं है क्योंकि पृथ्वी के राजा रामचंद्र हैं।

राजा रामचंद्र की जय। भारत का वसुधैव कुटुम्बकम का सूत्र केवल सिद्धांत या दर्शन नहीं है अपितु यह भारत के चक्रवर्ती राजसत्ता का उद्घोषक है, इस राजसत्ता को सर्वप्रथम राजा रामचंद्र ने ही इस संसार के समक्ष आदर्श स्वरुप में प्रस्तुत किया था, जिसके पश्चात संसार ने इसे रामराज्य के रूप में मान्यता दी, वास्तव में महर्षि वाल्मीकि का आदि काव्य रामायण एक ग्रन्ध से भी अधिक विश्व के शासन की संहिता है।

अब आते हैं मूल विषय पर कि विश्व का कोई भी व्यक्ति अनाथ क्यों नहीं है? क्योंकि सभी प्रजा जनों के माता व पिता उस प्रजा का पालन करने वाला ही होता है, यों तो यह बहुत ही दारुण प्रसंग है कि किसी अबोध बालक-बालिका के माता-पिता किसी कारणवश उससे बिछुड़ जाएँ, जैसे माता और पिता को बच्चे के विच्छोह से दुःख होता है उसी प्रकार से बच्चे को भी माता-पिता के विच्छोह से दुःख होता है, अंतर केवल इतना ही है कि इस मर्म को व्यक्त करने का पूर्ण सामर्थ्य कई बार उसके शब्दों में नहीं हो पाता।

विभिन्न प्रकार के सामजिक कारणों, स्थानीय अपसंस्कृति, आकस्मिक घटना-दुर्घटना इत्यादि अनेक प्रकट व अप्रकट कारणों से बच्चों को अनाथ होना पड़ता है, जिसके कारण पूरा-का-पूरा एक मानव जीवन ही इस पृथ्वी पर एक दुःख की दास्ताँ बन जाता है, जिसे कोई सुनने वाला भी नहीं होता है।

जब दुनिया अपने को आधुनिक, ज्ञानी, समृद्ध, शक्तिशाली, वैभव संपन्न बनाने में लगी हुई है तो क्या वह अनाथ बच्चों को उनके माता-पिता व बुजुर्गों को उनके बच्चे उपलब्ध नहीं करा सकती, क्या दुनिया इस सामाजिक सिद्धांत से अपने को दूर करना चाहती है कि मनुष्य एक सामजिक प्राणी है और बिना परिवार के उसका जीवन सुखमय नहीं है।

वास्तव में जब कोई भी मनुष्य किसी भी अवस्था में किसी भी कारण से अपने स्वजनों से रहित हो जाता है तो जिस देश-राष्ट्र के शासन का वह अंग है तब तक उस शासन का प्रमुख ही उसके माता-पिता/पुत्र-पुत्री होते हैं।

उदहारण के लिए मान लें कि वर्तमान राजनैतिक भारत में कोई गर्भवती महिला चिकित्सालय में लाई गई और बच्चे का जन्म तो हुआ परन्तु प्रसव के समय उसके माता का देहांत हो गया और संयोग से उसके पिता भी उपलब्ध नहीं हों तो इस परिस्थिति में उसके पिता का स्थान भारत का शासनाध्यक्ष अर्थात राष्ट्रपति ही उस बच्चे का स्वाभाविक पिता है और राष्ट्रपिता की पत्नी उसकी माता होगी। क्योंकि प्रजा का पिता राजा होता है और प्रणाली भले ही लोकतंत्र की हो तो भी राष्ट्राध्यक्ष को राजा का ही स्थान प्राप्त होता है।

अब दूसरी परिस्थिति में मान लें की किसी माता-पिता की कोई संतान नहीं है और संतान प्राप्ति की जैविक अवस्था भी नहीं है, या संतान तो थी परन्तु वह काल का ग्रास बन गई और माता पिता बिना बच्चे के अनाथ की ही भांति बेसहारा हो चुके हैं तो ऐसी परिस्थिति में शासनाध्यक्ष की ही यह जिम्मेदारी है कि वह उन माता-पिता को सहारा दे और जीवन लीला रहने तक भावपूर्ण तरीके से उन्हें अवलंबन प्रदान करे।

अब मान लें कि कोई शासन इस बात को स्वीकार करने से मना करता है तो उस सरकार को अपने नागरिकों से कर लेने का क्या अधिकार है, क्योंकि जब सामर्थ्यवान नागरिक अपनी कमाई का एक निश्चित हिस्सा शासन को प्रदान कर रहा है तो उसका का कर पूरे शासन के लिए है। शासन क्षेत्र के सभी नागरिक व प्राकृतिक समाज के लिए है, जो कोई भी शासन के क्षेत्र में अनाथ हो गया तो उसे अवलंबन प्रदान करना यह शासन का स्वाभाविक दायित्व है।

एक पुरानी भजन श्रृंखला में यह गया जाता है कि सुख के सब साथी दुःख में न कोय …… वास्तव में यह भारतवर्ष के घोर गुलामी के कालखंड का भजन है जब शासन व सत्ता बिखर चुके थे परन्तु अब सत्ता पुनः अपना स्वरुप ग्रहण कर रही है तो दुःख का स्वाभाविक साथी सत्ता होती है इस का प्रसार करना अत्यंत आवश्यक है।

दुनिया में कहीं भी कोई अपने को अनाथ न समझे, लाचार न समझे, जो जहाँ है जिस शासन का अंग है, वहां के शासन से पिता होना के कर्तव्य की मांग करे क्योंकि शासन का यह कर्तव्य ही प्रजा का अधिकार है, जो शासन प्रजा को पुत्र रूप में पालन करने में असमर्थ हो और केवल कर लेने का ही दायित्व निभाना जानती हो उसे तत्काल नष्ट कर दिया जाना चाहिए, इसमें कोई बुराई नहीं है।

इस भौतिक संसार के राजा रामचंद्र हैं और पूरे संसार में रामराज्य है, राजा रामचंद्र के राज्य के सञ्चालन का कार्यभार रामराज्य प्रशासन पर है, विश्व की मानव प्रजा अपने को कभी भी अनाथ न समझे और किसी भी संकट में यदि शासन उसका सहयोग न करें, प्रशासन उसका अवलंबन न बन सके तो आप राजा रामचंद्र के रामराज्य प्रशासन, अयोध्यापुरी के शरण में आने के लिए उसी प्रकार स्वतंत्र है जैसे एक पुत्र अपने माता-पिता के पास जाने को स्वतंत्र होता है।

रामराज्य प्रशासन का यह सैद्धांतिक प्रयास यदि आपको अच्छा लगे तो इसे अन्य लोगों तक शेयर करें, अपनी प्रतिक्रिया दें, अपना समर्थन दें और जिस भी रूप में राजा रामचंद्र के प्रशासन को सहयोग कर सकते हैं करें- राजा रामचंद्र की जय

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