
राजा रामचंद्र की जय। हिंदुत्व की आदि भूमि भारत समेत समस्त विश्व में इस्लाम के आक्रमण के अलग-अलग आयाम रहे हैं। भारत के संदर्भ में इस आयाम का नाम है गजवा-ए-हिंद।
इस्लाम के उदय के साथ ही, इस्लाम अपने शासन प्रणाली को विस्तृत करने और विश्वव्यापी करने के लिए सर्वप्रथम अरब क्षेत्र में जो तामसिक व्यक्ति के नागरिक थे उनको इस्लाम में दीक्षित करके और इस्लाम का विस्तार प्रारंभ किया।
भारत का व्यापार प्राचीन काल से ही विश्व स्तर पर होता रहा है जिसके कारण अरब की संस्कृति में भी भारत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है परंतु इस्लाम के उदय के बाद सत्ता के संघर्ष मैं जब भारत के राजाओं का हस्तक्षेप हुआ, तब इस्लामिक विचार के सुन्नी संप्रदाय द्वारा भारत को जीतने के लिए गजवा-ए-हिंद नाम के एक नए आयाम का उदय हुआ। इसके बाद का इतिहास सभी को मालूम है कि किस प्रकार से पृथ्वीराज चौहान के हारने के बाद भारत में गजवा-ए-हिंद का वर्चस्व क्रमशः बढ़ता गया और उसका समापन भारत के प्रथम स्वतंत्रता समर में मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के अपदस्थ होने के साथ ही प्रारंभ हो गया।
भारतीय जनमानस लगातार कई शताब्दियों तक गजवा-ए-हिंद के क्रूर चक्र में पिसता रहा समय-समय पर भारत के शासकों द्वारा इसका प्रतिकार करने का प्रयास किया गया परंतु वह कभी भी पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह, शिवाजी इत्यादि अनेक ऐसे शासक और धर्म गुरु हुए जिन्होंने गजवा-ए-हिंद की बाढ़ को रोकने का दुस्साहस किया, पूर्ण सफलता तो नहीं मिली परंतु सफलता के आसपास ही इनका पराक्रम सिद्ध हुआ।
इस्लाम के गजवा-ए-हिंद स्वरूप के पलायन के पश्चात भारत के पुनर्जागरण का काल प्रारंभ हुआ। इस पुनर्जागरण के कालखंड को हिंदुत्व का नाम मिला। हिंदुत्व के अन्य तत्सम शब्दों यथा हिंदवी साम्राज्य, हिंदू राष्ट्र भी प्रचलित हुए। परंतु भारत पर मुगलों के बाद आए नए शासक अपने को स्थापित कर पाते, उसके पहले ही वैश्विक सामरिक और आर्थिक उथल-पुथल के कारण और भारत के आंतरिक दबाव को न झेल पाने के कारण उन्हें पलायन करना पड़ा।
इस पलायन के कालखंड में शासन में एक बहुत बड़ा निर्वात उत्पन्न हुआ इस निर्वात का लाभ उठाकर गजवा-ए-हिंद के आयाम को मजबूत करने वाले बहुत से गिरोह सक्रिय हो गए, जिसके कारण भारत की भूमि का बंटवारा इस्लाम के आधार पर हो गया और भारत से अलग होकर पाकिस्तान बांग्लादेश इत्यादि देशों का उदय हुआ।
भारत में हिंदुत्व की अवधारणा अपेक्षाकृत गजवा-ए-हिंद के बहुत अधिक नई और कमजोर है। गजवा-ए-हिंद जहां अनैतिकता के सभी मानदंडों को प्रयोग करता है, वही हिंदुत्व नैतिकता के मानदंडों के प्रयोग में भी सफल नहीं हो पाता है। वर्तमान परिपेक्ष में देखा जाए तो भारत में हिंदुत्व का उदय वैचारिक रूप से तो बहुत पहले हो चुका था, परंतु संगठन की दृष्टि से हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गठन के बाद ही यह प्रारंभ हो सका। हिंदू महासभा, इस्लामिक गजवा-ए-हिंद के आयाम के प्रतिक्रिया के रूप में था, परंतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रतिक्रिया की जगह एक क्रियाशील गतिविधि का अवलंबन किया। जिसके कारण बंटवारे के समय हिंदुत्व का संगठनात्मक चेहरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही बना।
परंतु गजवा-ए-हिंद के छद्म स्वरूप को समझ पाने में तत्कालीन हिंदुत्व के संगठन असफल रहे, उन्होंने हिंदू नाम से जाने जाने वाले सभी नेताओं को अपने तरह ही नैतिक, प्रक्रिया का पालन करने वाला मान लिया। जबकि गांधी से लेकर नेहरू तक यह सभी सत्ता के इर्द-गिर्द अपना व्यवहार अलग रखते थे, जनता के समक्ष अपना स्वरूप अलग रखते थे और हिंदुत्व के विचार को यह अपने लाभ के लिए प्रयोग करते थे। जैसे गाँधी ने हिन्दू जनता को अपने मोहपाश में बांधने के लिए रामराज्य की बात की, हिंदी की बात की, गौ हत्या रोकने की बात की, लेकिन किया कुछ भी नहीं। वहीँ नेहरु ने अपने को ब्राम्हण घोषित किया, भारत एक खोज नाम की किताब लिखा, अपने को भारत के बच्चों से चाचा संबोधित कराया परन्तु भारत का बटवारा स्वीकार किया, वन्देमातरम का विरोध किया और काश्मीर अपने भाई शेख अब्दुल्ला को दे दिया।
हिंदू जनमानस छद्म हिंदुओं को ही समर्थन करता पाया जाता था, जिसका लाभ उठाकर कांग्रेस ने सत्ता को इस प्रकार से ग्रहण किया कि हिंदुत्व का अधिक से अधिक नुकसान हो। जहां एक ओर लाखों की संख्या में हिंदुओं को अपने पूर्वजों के भूमि से पलायन करना पड़ा, वही कांग्रेस ने ऐसे-ऐसे नियम कानूनों में हिंदुओं को जकड़ दिया कि वह हिंदुत्व के विषय में कभी विचार ही ना कर सके। इन्हीं में से कश्मीर में धारा 370, पाकिस्तान को आधा कश्मीर दे देना, भारत में मुसलमानों को हिंदुओं के समान नागरिकता प्रदान करना, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं को प्रताड़ित किए जाने पर मौन धारण इत्यादि अनेक ऐसे उदाहरण मिलेंगे जो हिंदुत्व को नुकसान पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने सदा ही तत्परता से प्रयोग किए।
दैव योग से गांधी की हत्या के बाद हिंदुत्व के संगठनात्मक ढांचे को कुचलने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बुरी तरह प्रताड़ना की गई जिसके कारण हिंदुत्व का आंदोलन पुनः सुसुप्त अवस्था में चला गया परंतु इसके समकक्ष अन्य धार्मिक आंदोलनों ने जगह ले लिया, जैसे गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाना। यह आंदोलन भी छद्म हिन्दुओं के षडयंत्र का शिकार बना और भारत में संसद पर हिंदू धर्म के संतों पर बड़ी गोलीबारी के साथ ही समाप्त हो गया।
धीरे धीरे दुनिया बदली, तकनीक बदले, विचारों के आदान-प्रदान की सरलता ने अपने पैर पसार लिए और हिंदुत्व पुनः एक नई उड़ान के लिए तैयार होने लगा। इसी क्रम में श्री राम जन्मभूमि आंदोलन एक मील का पत्थर साबित हुआ, जब अयोध्या स्थित गजवा-ए-हिंद आंदोलन का प्रतीक बाबरी मस्जिद को हिंदुओं ने नष्ट कर दिया, फिर इसके बाद हिंदुत्व ने पीछे ,मुड़कर नहीं देखा और धीरे-धीरे भारत के शासन पर हिंदुत्व ने अपना नियंत्रण बना लिया।
परंतु बात फिर वही आकर रुक जाती है की गजवा-ए-हिंद और हिंदुत्व दोनों की जो संघर्ष की कहानी है इसमें हिंदुत्व बहुत ही नया है। हिंदुत्व को अभी बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है, गजवा-ए-हिंद के समर्थक भारत में बड़े राजनीतिक दल और घराने हैं, जबकि हिंदुत्व के समर्थक कई घराने सत्ता के लिए हिंदुत्व का नुकसान करने में भी पीछे नहीं हटते हैं। जबकि गजवा-ए-हिंद के समर्थक हिंसा, लूट, चोरी, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, असत्य भाषण इत्यादि सभी चीजों में पारंगत होकर के भी सीना ठोक कर अपने को साफ पाक बताते हैं। वही हिंदुत्व के पुरोधा नैतिकता की आवश्यकता से अधिक दुहाई देते हैं, आदर्शों का आवश्यकता से अधिक विचार करते हैं, जिसके कारण गजवा-ए-हिंद के ठेकेदार जो भारत में सेकुलर के नाम से जाने जाते हैं, हमेशा ही हिंदुत्व पर भारी पड़ते हैं।
नैतिकता और आदर्श कोई बुरी बात नहीं होती है परंतु संघर्ष की रणनीति शत्रु के चक्रव्यूह में फंसने के जगह शत्रु को अपने चक्रव्यूह में फंसाने की होनी चाहिए। सामान्यतः होता यह है की शत्रु एक चक्रव्यू तैयार करता है, जिसमें हिंदुत्व जाकर पहुंचाता है। इसके अपेक्षाकृत यदि हिंदुत्व कोई चक्रव्यू तैयार करे और गजवा-ए-हिंद रूपी शत्रु उसमें फंस जाए तभी हिंदुत्व के विजय की संभावना हो सकती है अन्यथा नहीं।
यह देखने में आता है कि हिंदुत्व के पुरोधा हिंदुत्व के संघर्ष में हिंदू जनमानस का साथ तो लेते हैं परंतु जब हिंदू कार्यकर्ता किसी भी कारण से समस्या ग्रस्त हो जाता है तो हिंदुत्व के पुरोधा उसे पीछे छोड़कर, नए कार्यकर्ता के साथ आगे बढ़ जाते हैं। वही गजवा-ए-हिंद के पुरोधा अपने कार्यकर्ताओं को किसी भी कीमत पर पीछे नहीं छोड़ते हैं, जबकि उनके कार्यकर्ता चोरी, हिंसा, बलात्कार इत्यादि जैसी जघन्य अनैतिक समस्याओं से ही क्यों ना ग्रस्त हो।
हिंदुत्व के पुरोधा अपने को समष्टि निष्ठ तो बताते हैं परंतु व्यष्टि को हितलाभ देने में वे पीछे हट जाते हैं। इसके ठीक विपरीत गजवा-ए-हिंद के पुरोधा व्यष्टि के हित लाभ पर निरंतर ध्यान देते हैं और समय आने पर व्यष्टि के हित लाभ का भी कार्य करते हैं।
गजवा-ए-हिंद का कार्य करने वाले मस्जिदों, मदरसों, राजनीतिक दल इत्यादि, व्यष्टि को ही लाभान्वित करने में निरंतर ध्यान देते हैं, जिसके कारण इनका कभी भी प्रयोग करके भारत में हिंदुओं के सभी प्रतिष्ठानों को आसानी से वे चुनौती दे देते हैं। परंतु हिंदुत्व का कार्य करने वाले मंदिर, धर्मगुरु, राजनीतिक दल, व्यष्टि के हित की कभी भी बात नहीं करते हैं अपितु समष्टि के हित लाभ की बात करते हैं। इसीलिए जब समष्टि के लिए संघर्ष करने के बात, आती है, तो हिंदू अपने घर पर ही बैठना अधिक पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं होता है कि संकट में पड़ने पर उन्हें हिंदुत्व के प्रतिष्ठानों से किसी प्रकार की मदद मिलेगी ।
जहां गजवा-ए-हिंद के पुरोधा बंधुत्व को बढ़ावा देते हैं और बिना किसी बड़े संगठन के बाद भी वे इस्लाम पर मर मिटने वाले युवक-युवतियों को तैयार कर लेते हैं, वही हिंदुत्व के पुरोधा बड़े-बड़े संगठन कर्ता होने के बाद भी बंधुत्व को बढ़ावा नहीं देते हैं और जिसके कारण हिंदुत्व पर मर मिटने के लिए युवक-युवतियों को तैयार करना एक टेढ़ी खीर हो जाता है।
हिंदुत्व का आंदोलन अभी बहुत नया है गजवा-ए-हिंद की अपेक्षा इसकी रणनीति बहुत कमजोर है। अत: हिंदुत्व के पुरोधाओं को और अधिक विचार पूर्वक कार्य करने की संभावनाएं तलाशने चाहिए, जिससे कि गजवा-ए-हिंद आंदोलन को उसकी भूमि पर जाकर मात दी जा सके।
राम राज्य प्रशासन का यह स्पष्ट मत है कि हिंदुत्व के आंदोलन में शासन और संसाधन हिन्दुओं के प्रति अधिक उपयोगी और जवाब देह होनी चाहिए। अपेक्षाकृत गजवा-ए-हिंद के पृष्ठभूमि पर कार्य करने वाले लोगों के।