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सनातन अर्थव्यवस्था का तीर्थ पक्ष

राजा रामचंद्र की जय। विश्व में सर्वप्रथम अर्थ की उत्पत्ति करने का श्रेय अयोध्या अधिपति राजा पृथु को जाता है, जिनके पुरुषार्थ के कारण ही विश्व को धर्म के बाद दूसरे सबसे लोकप्रिय मानव पुरुषार्थ अर्थ का ज्ञान हुआ, राजा पृथु के कारण ही धरती को दो अन्य नामों से भी जाना गया, पहला पृथ्वी और दूसरा अर्थ। वास्तव में हम जिस अंग्रेजी के earth को जानते हैं वह संस्कृत के अर्थ का पर्याय है, पश्चिम के जगत को अर्थ तो पता है परन्तु उसका इतिहास नहीं पता है।

सनातन धर्म की तरह ही सनातन अर्थ के भी दाता भारत के यशस्वी राजा अयोध्या अधिपति ही रहे हैं, जिनमें राजा पृथु का नाम सर्वप्रथम है, इसी अर्थव्यवस्था का एक पक्ष है तीर्थ, इसके अतिरिक्त तीर्थ स्नान, तीर्थ दर्शन, तीर्थ यात्रा इत्यादि इसके विभिन्न आयाम हैं। मनुष्य द्वारा विभिन्न प्रकार की क्रियाएं करके अर्थार्जन किया जाता है, इसके उपरान्त अर्थ रूपी धन को बचत व संचय करने का भी मानव स्वभाव है, जबकि मनुष्य के लिए संचय करना एक धर्म निषेध कर्तव्य बताया गया है, और प्राचीन कहावत भी है कि “पूत कपूत तो क्या धन संचय और पूत सपूत तो क्या धन संचय” परन्तु इसके बाद भी मनुष्य स्वभाव में संचय करने की प्रवृत्ति है, जिसके कारण वह धन को संचय करके अपने भविष्य के लिए रखता है, मानव समाज में भविष्य के भी कई आयाम हैं जैसे पुत्र-पुत्री, बुढ़ापा, आकस्मिक घटना-दुर्घटना इत्यादि। इसी विषय को ध्यान में रखते हुए और मानव स्वभाव का प्रयोग सनातन अर्थ के सञ्चालन हेतु करने के लिए तीर्थ नामक क्रियाकलाप का सृजन किया गया।

सनातन धर्म में विभिन्न तीर्थों की मान्यता है, जहाँ जाकर मनुष्य अपने आप को धन्य समझता है और अपनी विभिन्न मनोकामनाओं को पूर्ण करने का माध्यम भी मानता है, इन तीर्थों पर जाकर वह दर्शन, स्नान, ध्यान, पूजन, यजन, दान, संकल्प, मुंडन, सत्संग, यात्रा, कर्मकांड इत्यादी के माध्यम से अपने संचित धन को बिना किसी दबाव व जोर जबरदस्ती ब्यय करता है, आगे भी व्यय करने का संकल्प लेता है। इसके कारण एक तरफ वह अपने भावनात्मक व अध्यात्मिक पक्ष को मजबूत व पूर्त करता है वहीँ दूसरी ओर वह अर्थ के स्वरुप को गतिशील बनाता है, इसी गतिशीलता के कारण अर्थ की सनातनता बिना किसी शोषण के ही प्रजा पोषण करने में अपनी भूमिका निभाती रहती है।

तीर्थ का यह स्वरुप भारत पर होने वाले असुरों के आक्रमणों के कारण बार-बार छिन्न-भिन्न होता रहता है, और बार-बार सनातन शक्तियों द्वारा असुरों के आक्रमण स्वरुप नष्ट हुए तीर्थों को सुदृढ़ करने का प्रयास किया जाता है।

समस्या यह है कि भारत को इस बात का ज्ञान नहीं ही नहीं है की वह सम्पूर्ण विश्व का शासकीय नियंता है, जिसके कारण वह केवल रक्षात्मक भूमिका में ही रहता है और शेष विश्व में सनातन अर्थ को वह स्थापित नहीं कर पाता है, जिसके कारण सनातन धर्म की सीमाएं लगातार असुरक्षित बनी रहती हैं, वर्तमान समय में पूरी दुनिया में एक भी ऐसी शासकीय व्यवस्था नहीं है जो सनातन अर्थव्यवस्था के अनुकूल हो, जिसके कारण तीर्थों की भी दुर्दशा देखने को प्रायः मिलती है।

वर्तमान समय में सनातन धर्म केवल भारतवर्ष के कुछ क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गया है, और इस क्षेत्र में भी नास्तिक शासकीय व्यवस्था होने के कारण वह तीर्थ क्षेत्रों को किसी प्रकार का विशेष सहयोग तो नहीं करती है अपितु इन तीर्थों से धन उगाही पर ही केवल ध्यान देती है। जिसके कारण सनातन अर्थव्यवस्था निरंतर कमजोर हो रही है, कमजोर होती इस सनातन अर्थव्यवस्था को विकसित और समृद्ध करने के लिए आवश्यक है की इस सनातन अर्थव्यवस्था का और अधिक अध्ययन और अध्यापन हो, इस संबंध में अधिक-से-अधिक शोध हो जिससे तीर्थ समेत सनातन अर्थ के अन्य आयाम जैसे संस्कार विधियाँ, गौ पालन, धर्मशाला इत्यादी को भी प्रकाशित किया जा सके।

शासकीय व्यवस्थाओं को भी इन सनातन अर्थव्यवस्था के सूत्रों पर कार्य करने की आवश्यकता है, विशेषकर बड़े तीर्थ स्थल, बड़े नदी किनारे के स्नान तट, देशभर में स्थापित धर्मशालाओं का जीर्णोद्धार, देखरेख, नए धर्मशालाओं का निर्माण, विशेषकर के बड़े नगरों व महानगरों में। प्रायः यह देखने में आया है कि सरकारें केवल यातायात व्यवस्था, सुरक्षा व्यवस्था, थोड़ी बहुत विधुत व्यवस्था व साफ-सफाई की व्यवस्था के अतिरिक्त कुछ विशेष नहीं करती, सरकारें इन तीर्थों पर होने वाले आयोजन को केवल मजबूरी मात्र समझती हैं और अपना योगदान करती हैं, जबकि तीर्थ स्थल पर पहुँचने वाले तीर्थ यात्रियों का प्रबंधन करना एक बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य है, जिससे की तीर्थ रूपी सनातन अर्थतंत्र को और मजबूत किया जा सके परन्तु वर्तमान समय में ऐसा होता प्रतीत नहीं हो रहा है।

वर्तमान सरकारों के पास कोई ऐसा तंत्र ही नहीं है जो इस प्रकार के आयोजनों के सफलता, प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हो और तीर्थों के मान मर्यादाओं के अनुरूप कार्य कर सके, देश के अधिकांश बड़े तीर्थ पंडों के चंगुल में फंसे हुए हैं, जो तीर्थ यात्रियों से अधिक से अधिक धन लेने की इच्छा के अतिरिक्त और कोई विशेष कार्य नहीं करते।

अप्रबंधन के कारण कई बार तीर्थों पर बड़े हादसे हो जाते हैं और सामान्य प्रजा जन इस अप्रबंधन के कारण तीर्थों से अपने को विलग कर लेते हैं जिससे पूरा का पूरा सनातन अर्थव्यवस्था की हानि होती है। अतः रामराज्य प्रशासन के लिए अति आवश्यक है की सनातन अर्थ के विकास के लिए कार्य करे।  

Comments(5)

  1. Reply
    Ashwani Singj says

    dhanyawad
    hame uchit gyan dene k liye.
    aur mai en chijo par amal krunga

  2. Reply
    Ashwani Singh says

    जय श्री राम

  3. Reply
    Bagesh says

    Jai Sri ram

  4. Reply
    Vashudevacharya says

    Raja Ramchandra ki jay. Aj mai Ayodhya me Hanuman Gadhi , Ram janmbhumi jakar Raja Ramchandra ke Darshan kiya.

  5. Reply
    Ashwani Singh says

    dhanyawad
    hame uchit gyan dene k liye
    mai es par pure dhayan se amal krunga

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