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श्री संजय विनायक जोशी – रामराज्य के अनुकूल व्यक्तित्व

रामराज्य के अनुकूल नेतृत्व मिलना इस कलयुग में दुर्लभ है, परन्तु वर्तमान युग में भी भारत के राजनैतिक परिदृश्य में एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसके स्वभाव में रामराज्य के अनुकूल नेतृत्व के गुण पाए जाते हैं, भारत में यों तो कई राजनैतिक दल हैं, परन्तु कोई ऐसा नेता नहीं दिखता है जो कार्यकर्ता और जनता दोनों को एक ही नजर से देखता हो, उनके समस्याओं को सुनता हो, समस्याओं के समाधान का तत्काल प्रयास करता हो और अपने प्रभाव से यथा संभव समस्या का निराकरण करता हो।

यही वह व्यक्तित्व है जो राजकुमार के रूप में श्री रामचंद्र के अन्दर पाया जाता था, जिसके कारण वे अन्य राजकुमारों के अपेक्षा प्रजा के अधिक दुलारे थे, यही कारण था कि उनके वनवास के वियोग को प्रजा ने असह्य माना और उनके वनवास को रोकने का भरसक प्रयास किया, वनवास नहीं रुकने के बाद भरत जी के साथ जाकर श्री रामचन्द्र जी को वापस लाने का पुनः प्रयास किया, परन्तु वह भी सफल नहीं हुआ और अंततः जब वनवास के बाद श्रीरामचंद्र जी अपना विजय अभियान पूरा करके सकुशल वापस अयोध्या लौटे तो पूरी अयोध्या समेत पुरे विश्व में दिवाली जैसा उत्सव हुआ।

आज जिस प्रकार से श्री संजय विनायक जोशी जी को उनके ही राजनैतिक संगठन ने वनवास दे रखा है उससे पार्टी के कार्यकर्ता से लेकर सामान्य जन मानस तक सभी आहत हैं, सभी का यह मानना है कि श्री संजय भाई जोशी जी को सक्रीय रूप से संगठन का दायित्व दिया जाना चाहिए, क्योंकि उनकी प्रतिभा और श्री रामचंद्र के अनुकूल सभी की समस्या को सुनकर उसके समाधान का मार्ग निकालने का स्वभाव की सभी को बहुत आवश्यकता है, परन्तु भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री के निजी खुन्नस और उनके मित्र भाजपा अध्यक्ष के षड्यंत्र के कारण, साथ ही साथ जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वे प्रचारक हैं उस संघ के किंकर्तव्यविमूढ़ता का ही यह परिणाम है कि उन्हें नेपथ्य में रहकर समाज व राष्ट्र की सेवा करनी पड़ रही है।

संजय भाई जोशी केवल समाज, राष्ट्र व संगठन को दिए अपने वचन से बद्ध होने के कारण ही न तो नए राजनैतिक दल का सूत्रपात कर रहे हैं और न ही अपने लिए कोई और विकल्प का तलाश कर रहे हैं।

रामराज्य प्रशासन का यह मत है कि प्रजा सुलभ नेतृत्व को ही आगे बढ़ाना रामराज्य के सञ्चालन के लिए उचित है और संजय विनायक जोशी जी का व्यक्तित्व रामराज्य के पूर्णतः अनुकूल प्रतीत होता है।

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