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अतिविकास, अतिविलाश और अतिसत्तामद का परिणाम है कोरोना महामारी

अयोध्यापुरी, पूरी दुनिया में जो कोरोना नाम की महामारी फैल चुकी है वह केवल संयोग नहीं है, अपितु दुनिया में प्रचलित अतिविकास, अतिविलाश और अतिसत्तामद का दुष्परिणाम है, जब दुनिया में विकास नहीं था, तब भी दुनिया में एश्वर्य था, खुशी थी, धन था वैभव था और ज्ञान, विद्या इत्यादि भी था, फिर दुनिया को क्रूरता से, पहले मोहम्मद के नाम नष्ट किया गया, फिर चर्च के लूट के सिद्धांत का पालन करने वाले यूरोप ने लूटा और जब दुनिया निरीह और दरिद्र हो गई तब मनुष्य को छोड़कर प्रकृति को लुटने के लिए विज्ञान के प्रेत पर चढ़कर अनर्थ ने वित्त के स्वरुप में अपने पैर पसार लिए।

प्रकृति के अंधाधुंध शोषण के लिए विज्ञानासुर ने मनुष्य को यह समझा दिया की दुनिया केवल उसके ऐश्वर्य के लिए है और चौरासी लाख योनि के जीवों का ऐसा शोषण प्रारंभ हुआ कि जैसा शोषण मनुष्य के लाखों वर्ष के इतिहास में कभी नहीं हुआ था, विज्ञानासुर के जन्म के बाद से      अनगिनत लोग ऐश्वर्य के साधन और उसे प्राप्त करने हेतु वित्तीय साधन के संग्रहण के लिए अपने ग्राम, वन, समाज, संस्कार, परिवार इत्यादि छोड़कर चमचमाते हुए नगरों में आकर अतिविकास की चाहत में अपने और अपनों को समाप्त करते जा रहे हैं। हमने टिन के गाड़ी के लिए जीवित पशु मित्रों की बलि दे दी, कृषि में ऐश्वर्य को प्राप्त करने के लिए बैलों की बलि देकर ट्रेक्टर पर चढ़ने लगे, गाय के गोबर की जगह विज्ञानासुर के यूरिया और पोटाश को पालने लगे, देशी गाय गुणकारी कम दूध की जगह वित्त के चाहत के लिए शंकर नश्लों के सफ़ेद जहर से अपने बच्चों को पालने लगे, दादा, परदादा ८० साल में भी जवान लगते थे और हम ३५ साल में विज्ञान के ऐश्वर्य को भोगने के लिए बाल डाई करने लगे। और भी बहुत कुछ विज्ञानासुर सुर आपको दे रहा और देगा क्योंकि हमें अतिविकास की भूख लगी हुई है, जब हम व्रत रखते हैं तो विज्ञानासुर अंधविश्वास कहके हमें ऐश्वर्य के मार्ग पर पुनः प्रशस्त कर देता है।

फिर हुआ अतिसत्तामद का जन्म हुआ जिसे पालने पोषने की जिम्मेदारी मिली नेतासुरों को। दुनिया के सभी हिस्सों में जबान चलाने वाले विचित्र-विचित्र नेता होने लगे, दुनिया के अलग-अलग सीमाओं में विज्ञानासुर के अत्याचार से शेष बची मनुष्य जाति को ये बिना हथियार के ही मारने लगे, ये नेता भी कई तरह के हैं, एक ओर प्रत्येक ५-६ वर्ष पर नियम बनाने वाली संस्था के स्वामी बनने वाले, देश में उपलब्ध संसाधन को प्रयोग करने वाले सामाजिक नेता, लोगों के आत्मिक उन्नति के चाहत और मृत्यु व स्वर्ग के भय इत्यादि  को पालने वाले स्वयंभू मौलाना, पादरी, मठाधिस नेताइत्यादि, ये जब जीवन में कुछ नहीं कर पाते हैं तो वे दुनिया अपने हितों के लिए प्रयोग करने लगते हैं और नाम देते हैं, परमार्थ, सेवार्थ इत्यादि। दुनिया को लिखे हुए नियम देते हैं, फिर स्वतः की निरंकुशता को आन्दोलन बताकर नए नियम देते हैं, चुनाव होते रहते हैं, नेता और नए नेता पैदा होते रहते हैं, सभी नेता और उनके गिरोह विलाश से अपने को अतिविलाश की ओर ले जाते हैं। अपने प्रजा को विलास का सपना देकर, सत्ता की शक्ति का प्रयोग निर्दोष प्रकृति के विनाश के लिए करने लगते हैं, प्रजा की कमजोरियों को अपनी शक्ति बनाकर, वह सभी संसाधनों और परोपकार का स्वामी बन जाता है। वास्तव में अतिसत्तामद का यह स्वभाव भी  कोरोना जैसे महामारी को जन्म देने के सूक्ष्म कारण हैं।

इसी प्रकार अतिविलासिता का वह स्वभाव जो बिना किसी परिश्रम के ही सभी सुख प्राप्त करना चाहता है, इसलिए २४ घंटे लाइट, कनेक्टिविटी, पल-पल के समाचार, मुद्रा का पल प्रति पल हिसाब, पक्के मकान, बिना मिट्टी के शहर, त्वरित और गतिशील यातायात के साधन, प्रत्येक वस्तु पैकेट बंद, भोजन पल भर में तैयार, दूध पैकेट में, गाय व अन्य मानव हितैषी पशु, गौशाला और पशुशाला जैसे बंदिगृहों में इत्यादि ऐसे बहुत से विलासिता के साधन मनुष्य अपने आस-पास बना चुका है जिसमें उसके अतिरिक्त किसी अन्य के लिए सभी के लिए असुविधा ही है।

जिन जीव जंतुओं को पहले स्वच्छ नदी, तालाब इत्यादि में शुद्ध पीना का पानी मिल जाता था, आज वे गटर और गंदे नाले का पानी पीने के लिए मनुष्य की विलासिता के कारण बाध्य किये जाते हैं, जो स्वच्छता के नाम पर प्रत्येक घर में शौचालय बन गए उनके सफाई में प्रयोग होने वाला जल, मल के साथ मिलकर असंख्य जीवों के जल पीने के अधिकार पूर्ण हनन है, जो पक्षी पहले उन्मत्त आकाश के साथी थे उनके बृक्षों को नष्ट करके ऐसे पेड़ लगा दीये गए जो न तो कोई फल दे सकें और न किसी पक्षी को आशियाना, यज्ञ से निकलने वाले धूम्र को अन्धविश्वास बोलकर तिलांजलि और पेट्रोल और डीजल के धूम्र को विज्ञान बोलकर स्वीकार करना मनुष्य के विलासिता का अतिरेक है, मनुष्य के मांस को छोड़कर लगभग सभी जीव केवल मानव स्वाद के लिए ही हैं, यह अतिरेक ही कोरोना जैसे महामारियों के उत्त्पन्न होने का कारण है।

ऊपर कहे गए सभी कारक उसे ही प्रभावित कर सकते हैं जो भावनायुक्त हो भावशून्य मनुष्य के लिए ऊपर कहे गए बातों का कोई मतलब नहीं है। रामराज्य प्रशासन के लिए भावनायुक्त मनुष्य ही श्रेष्ठ है, भावशून्य मनुष्य तो पशु से भी बत्तर है, उसके लिए शोक करने का कोई कारण नहीं है।

 

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